अनुसूइया जी ने जब "अनन्या" को पुकारा तो उनका स्वर भीग गया था । अनन्या के चेहरे पर वीरांगना के भाव थे । अनन्या ने अपनी कहानी शुरू की ।
बचपन से ही उसे जज बनने का जुनून था । उसने पांच वर्षीय कोर्स बी ए एल एल बी एक प्रतिष्ठित विश्व विद्यालय से किया था । बड़ी बड़ी कंपनियों से नौकरी के ऑफर आये थे मगर उसे तो जज बनना था इसलिए उसने परीक्षा पास की और न्यायिक मजिस्ट्रेट बन गई ।
जब उसने कोर्ट में सुनवाई शुरु की तब उसे पता चला कि वकील लोग किस किस तरह के हथकंडे अपनाते हैं । गीता पर हाथ रखवाकर जहां सत्य बोलने की शपथ दिलाई जाती है वहां असत्य ही बुलवाते हैं । उनका एकमात्र लक्ष्य होता है अपने मुवक्किल अपराधी को छुड़वाना। इसके लिए वे साम दाम दंड भेद सबका इस्तेमाल करते हैं । तारीख लेने में ही इनका जोर ज्यादा रहता है बजाय न्याय करवाने के । बार के माध्यम से मजिस्ट्रेट को धमकाने , हड़ताल की धमकी देने जैसा काम भी करते हैं ये नामी गिरामी लोग । इनका एक ही दीन है पैसा । एक ही ईमान है केस जीतना । चाहे दुर्दांत आतंकवादी हो या हिस्ट्रीशीटर । वे यह नहीं देखते कि वह अपराधी देश और समाज के लिए कितना घातक है । तर्क के बजाय कुतर्क ज्यादा करते हैं ये लोग ।
उसे नौकरी करते करते दो तीन साल ही हुए थे कि उसका स्थानांतरण हो गया । वहां पर बार का अध्यक्ष एक हाईकोर्ट के जज का भाई था । वह अपने आपको सुप्रीम कोर्ट का जज समझता था । वह खुद ही वकील और खुद ही जज बन जाता था और बार बार अपने जज भाई की धौंस दिखाता था । अनन्या ने इसकी शिकायत जिला जज से भी की थी लेकिन जिला जज इस मुद्दे पर खामोश ही रहे । वे हाईकोर्ट के जज के प्रकोप का शिकार नहीं बनना चाहते थे ।
एक दिन भरी अदालत में उस वकील ने उसे अनाप शनाप बक दिया और कई अनर्गल आरोप भी लगा दिये । उसने उसे "कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट" का नोटिस टिका दिया तो उसे उस हाईकोर्ट के जज की फटकार मिली और उसे नौकरी से निकालने की धमकी दे दी गई । इस सबसे वह बहुत डर गई थी ।
एक दिन वह अपने चैंबर में बैठी थी कि अचानक एक आदमी आया और उसने उसकी टेबल पर रुपयों से भरा बैग खाली कर दिया । वह कुछ समझ पाती कि इतने में पत्रकारों की टोली आ गई और फोटो खींचकर ले गई । दूसरे दिन सारे अखबारों के पहले पन्ने पर वह फोटो और रिश्वत लेने का समाचार छपा था । हाईकोर्ट ने उस समाचार के आधार पर उसे निलंबित कर दिया था ।
वह घर पर उदास बैठी हुई थी कि वह दुष्ट वकील उसके घर आ गया और उससे बदतमीजी करने लगा । यह सब्र की इन्तेहा थी । वकील के इरादे ठीक नहीं लग रहे थे और घर में वह अकेली थी । उसने जोर लगाकर वकील की गिरफ्त से खुद को छुड़ाया और रसोई से चाकू ले आई । पर बेशर्म वकील जोर जोर से हंसता रहा और उसकी ओर बढता रहा । अपने बचाव में उसके पास और कोई रास्ता नहीं था । उसने कितने चाकू मारे, उसे याद नहीं । बस, मारती चली गई जब तक कि वह थक नहीं गई । उसी वीरता का परिणाम है जो आज वह इस जेल में है ।
कहते कहते उसकी आंखें सिंहनी की तरह चमकने लगी । सब लोगों ने गगनभेदी नारों से उसकी वीरता का इस्तकबाल किया ।
श्री हरि
17.10.12
Arshik
06-Nov-2022 06:42 AM
👌👌
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Mithi . S
06-Nov-2022 06:21 AM
बहुत सुंदर
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Gunjan Kamal
27-Oct-2022 07:13 PM
शानदार प्रस्तुति 👌🙏🏻
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